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बिहारः जिनके बच्चे बुखार से मरे, पुलिस ने उन पर ही किया केस- ग्राउंड रिपोर्ट

बिहार की राजधानी पटना से लगभग 45 किमी दूर वैशाली के हरिवंशपुर गाँव में दिमाग़ी बुखार यानी एक्यूट इन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से अब तक 11 बच्चों की मौत हो चुकी है.
पुलिस ने उन्हीं लोगों पर मुक़दमा दर्ज कर दिया जिनके बच्चे इस महामारी की चपेट में अपनी जान गंवा चुके हैं.
इस बीमारी को प्रभावित इलाक़ों में स्थानीय लोग चमकी बुखार भी कह रहे हैं. इससे अब तक क़रीब डेढ़ सौ बच्चों की मौत हो चुकी है.
हरिवंशपुर के मुसहर टोला से सात बच्चे, पासवान टोला और ततवा टोला से दो-दो बच्चे इसकी चपेट में आए हैं.
मुसहर टोली में जहां से सबसे अधिक बच्चों की मौत हुई है, ज़िला प्रशासन का पिछले दो हफ़्तों से कैंप लगा है. अभी भी बुखार से तपते बच्चों का कैंप में आने का सिलसिला जारी है.
सोमवार की सुबह मुसहर टोले में बुखार से पीड़ित सात बच्चों की जांच हो चुकी थी. एक का बुखार इतना बढ़ गया था कि उसे भगवानपुर पीएचसी में रेफर कर दिया गया.
रोकथाम के नाम पर कैंप लगाकर तीन नर्सों को प्रखंड अस्पताल से उठाकर टोले में एक पेड़ के नीचे कुर्सी-चौकी देकर बिठा दिया गया है.
कहने को तो हरिवंशपुर में सरकारी मेडिकल कैंप है लेकिन उसमें इस्तेमाल की जाने वाली कुर्सियां और चौकी भी गांव वालों के ही हैं.
गाँव वाले इस वक़्त सबसे अधिक इस बात से डरे हैं कि पुलिस ने बच्चों की मौत पर विरोध-प्रदर्शन करने वाले पीड़ित परिजनों के ऊपर ही केस कर दिया है.
18 जून को जिस दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिमाग़ी बुखार के मरीज़ों का हाल जानने के लिए मुज़फ्फ़रपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल का दौरा करने गए थे. टोले वालों ने अपने यहां की समस्याओं मसलन पीने का पानी, बुखार से इलाज की व्यवस्था की मांग के साथ विरोध प्रदर्शन किया था.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनएच-22 से होकर जाएंगे इसी को देखते हुए सड़क किनारे स्थित गाँव के लोगों ने रोड का घेराव कर दिया था.
पुलिस ने रोड घेराव के कारण ही 19 नामजद और 20 अन्य के खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है. नामजदों में क़रीब आधे दर्जन वे लोग हैं जिनके बच्चों की मौत बुखार से हुई हैसुरेश कहते हैं, "हम लोग तो पहले से पीड़ित हैं जबकि पुलिस कहती है कि हमने रोड जाम किया. इसलिए केस किया गया है. हम क्या करें! कोई तो हमें देखने आता नहीं है. हमलोगों ने सोचा कि मुख्यमंत्री इस रास्ते से जाएंगे तो उनको रोककर अपना हाल सुनाएंगे. लेकिन वो हेलिकॉप्टर से गए."
पुलिस ने राजेश सहनी, रामदेव सहनी, उमेश मांझी और लल्लू सहनी को नामजद अभियुक्त बनाया है. इनके बच्चों की मौत भी दिमाग़ी बुखार से हुई है. कई लोग पुलिस के डर से गाँव के बाहर रह रहे हैं.
एफ़आईआर में 65 वर्षीय एक बुज़ुर्ग शत्रुघ्न सहनी का भी नाम है. शत्रुघ्न सहनी को काफ़ी पहले लकवाग्रस्त हो गए थे. इसकी वजह से न तो वो ठीक से चल फिर पाते हैं और न बोल बाते हैं.
दिमाग़ी बुखार में अपने दो बेटों को खोने वाले चतुरी सहनी कहते हैं, "सांसद जी आए तो थे. लेकिन क्या हुआ, पता नहीं."
चतुरी के दो ही बेटे थे, दोनों नहीं रहे. वो कहते हैं, "एक ही दिन दोनों चले गए. उसी में 95 हजार खर्च हो गया. किसी तरह गाँव वालों ने कुछ चंदा करके दे दिया. बाक़ी क़र्ज हो गया है. अब चुकाना है."
भगवानपुर प्रखंड अस्पताल के मेडिकल कैंप में अपने पाँच वर्षीय बेटे रोहित को दिखाने आए देवेंद्र सहनी का कहना है कि रात में कोई कैंप में नहीं था, इसलिए दिखा नहीं पाए थे. सुबह बता चला कि रोहित को 100 डिग्री बुखार है.
हरिवंशपुर की आबादी करीब पाँच हज़ार है. गाँव में सब तरह की जातियाँ हैं और सभी जाति का एक अलग टोला है. मसलन मुसहर टोली या मल टोली में मल्लाह और मुसहर जाति के लोग रहते हैं. दुसाध जाति का अलग दुसाध टोला है.
रामनाथ सहनी इशारा करते हुए कहते हैं, "रोड के उस पार बड़ी जातियों के लोग हैं. राजपूत, ब्राह्मण और भूमिहार. उसी पार यादव लोग भी हैं. लेकिन उधर किसी के लड़का को चमकी नहीं है. जो रोड के इस पार हैं, उनके घरों के बच्चे ही मरे हैं. उन लोग के पास अच्छा इलाज है. हम अगर कहीं अच्छे अस्पताल में जाते भी हैं तो भगा देता है लोग."
वो कहते हैं, "रोड के उस पार वालों ने भी विपदा में साथ निभाया है. पानी का इंतजाम हो या मीडिया से लेकर प्रदर्शन की बात हो, वो हमारे पीछे खड़े रहे हैं."
भगवानपुर पीएससी की रेखा कुमारी पिछले 12 दिनों से गांव में कैंप कर रही हैं.
आखिर हरिवंशपुर में बच्चे क्यों बीमार पड़ रहे हैं इस पर रेखा कहती हैं, "यहां सबसे बड़ी समस्या पानी की ही है. पूरे टोले में एक ही चापाकल था जिससे लोग पानी पीते हैं, अब वो भी सूख गया है. उस पानी का सैंपल रिसर्च वाले भी ले गए हैं. बाकी यहां बहुत सी दिक्क़तें हैं. जागरूकता का अभाव है. साफ़-सफ़ाई नहीं है, ग़रीबी है, अशिक्षा है."

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