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कर्नल ग़द्दाफ़ी- झलक एक तानाशाह की ज़िंदगी की

इक्कीसवीं सदी का दूसरा दशक शुरू होते होते कर्नल मुअम्मर ग़द्दाफ़ी का वक़्त गुज़र चुका था.
वर्ष 2011 तक वो उस पुरानी फ़िल्म के किरदार सरीखे हो गए थे जिसे कोई दोबारा देखना नहीं चाहता था. वो उस समय सत्ता में आए थे जब वियतनाम का युद्ध चल रहा था, आदमी चाँद पर अपने क़दम रख चुका था और रिचर्ड निक्सन अमरीका के राष्ट्रपति हुआ करते थे.
तब से ले कर ग़द्दाफ़ी के इस दुनिया से जाने तक अमरीका ने सात राष्ट्रपति और ब्रिटेन ने आठ प्रधानमंत्री देख लिए हैं. लेकिन ग़द्दाफ़ी हमेशा अपनी तुलना ब्रिटेन की महारानी से करते थे.
जब लीबिया में विद्रोह शुरू हुआ तो ग़द्दाफ़ी ने अपने एक भाषण में कहा भी था कि 'अगर ब्रिटेन की महारानी पचास से अधिक वर्षो तक और थाईलैंड के राजा 68 सालों तक राज कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ?'
ग़द्दाफ़ी ने लीबिया पर पूरे 42 सालों तक राज किया. एक ज़माने में बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक रहे ग़द्दाफ़ी ने 1969 में लीबिया के बादशाह इदरीस का एक रक्तहीन सैनिक विद्रोह में तख़्ता पलटा था. उस समय उनकी उम्र थी मात्र 27 साल.
उस समय त्रिपोली में रहने वाले अशर शम्सी बताते हैं, ''मैं गहरी नींद में सोया हुआ था. मेरी बहन ने मुझे जगा कर कहा, उठो, उठो., सैनिक विद्रोह हो गया है. मैंने रेडियो ऑन किया. उसमें देश भक्ति के गीत बज रहे थे और ज़ोर ज़ोर से नारे लगाए जा रहे थे. मैंने अपने कपड़े पहने और बाहर चला गया. ''
''जब मैं सिटी सेंटर पर पहुंचा तो वहाँ बहुत से लोग सड़कों पर जमा थे. वो लोग लीबिया और क्रांति के पक्ष में नारे लगा रहे थे. किसी को पता नहीं था कि सत्ता किस के हाथ में आई है. मैं भी जानना चाहता था कि हो क्या रहा है.''
ग़द्दाफ़ी ने शुरू से ज़ोर दिया कि वो व्यक्ति पूजा के घोर विरोधी हैं. लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया, वो निरंकुश तानाशाह बनते गए. और अपनी सुरक्षा के प्रति उनकी सनक ख़तरनाक हद तक बढ़ती गई.
ग़द्दाफ़ी की जीवनी लिखने वाले डेविड ब्लंडी और एंड्रू लिसेट अपनी किताब 'क़द्दाफ़ी एंड द लीबियन रिवोल्यूशन' में लिखते हैं, 'जब ग़द्दाफ़ी ने पहली बार सत्ता संभाली तो वो त्रिपोली में एक पुरानी खटारा 'फ़ोक्स वैगन' में घूमा करते थे. वो और उनकी पत्नी स्थानीय सुपर मार्केट में खुद ख़रीदारी करते थे. लेकिन धीरे धीरे सब बदलने लगा.
''जब वो 'अज़ीज़िया बैरेक्स' से निकलते थे तो हथियारबंद कारों का काफ़िला दो अलग-अलग दिशाओं में दौड़ता था. एक में वो ख़ुद होते थे और दूसरे को झाँसा देने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. जब वो हवाई जहाज़ से कहीं जाते थे तो एक साथ दो जहाज़ उड़ान भरा करते थे. जिस जहाज़ में उन्हें जाना होता था, उसे उड़ान भरने के दो घंटे बाद वापस उतार लिया जाता था.
''तब जा कर वो उसमें बैठते थे, ताकि अगर उस विमान में कोई बम रखा हो तो वो उनके बैठने से पहले फट जाए. एक बार उन्होंने ट्यूनिशिया संदेश भिजवाया कि वो वहाँ कार से पहुंचेंगे. वहाँ का सारा मंत्रिमंडल उनके स्वागत में सीमा पर पहुंच गया. बाद में पता चला कि वो सुरक्षा कारणों से विमान से ट्यूनिस पहुंच गए.''
''जब उनके विमान उतरने से पहले हवाई अड्डे के कंट्रोल रूम ने पूछा कि विमान में कौन है तो पायलेट ने ग़द्दाफ़ी का नाम न लेते हुए कहा, 'हमारे विमान में एक अति महत्वपूर्ण व्यक्ति है.''
अपनी सुरक्षा के प्रति ग़द्दाफ़ी की सनक की और ख़बरे भी बाहर आने लगीं.
लिंडसी हिल्सम ने अपनी किताब, ''सैंड स्टॉर्म - लीबिया इन द टाइम ऑफ़ रिवॉल्यूशन' में लिखती हैं, 'वर्ष 2009 में अमरीकी राजदूत जीन क्रेंट्ज़ ने एक डिपलोमैटिक केबिल में ग़द्दाफ़ी की यूक्रेनियन नर्स गेलीना कोलोत्निस्का पर उनकी निर्भरता का ज़िक्र किया. गेलीना के बारे में कहा जाता था कि वो ग़द्दाफ़ी की प्रेमिका हैं.
वो ये सुनिश्चित करती थीं कि ग़द्दाफ़ी जिस चीज़ को छुएं, वो पहले से स्टेरेलाइज़्ड की गई हो. उनकी कुर्सी पर भी कीटाणुनाशक छिड़के जाते थे और उनके माइक्रोफ़ोन को भी स्टेरेलाइज़्ड किया जाता था.
ग़द्दाफ़ी जब भी विदेश जाते थे तो होटल में वो अपने साथ ले जाई गई चादरें बिछवाते थे. उनके बारे में यह भी कहानी मशहूर है कि एक बार उन्होंने एक बड़े अरब नेता का हाथ मिलाने से पहले सफ़ेद रंग का दस्ताना पहना था, ताकि उनके हाथों में कोई संक्रमण न हो जाए.'
लॉकरबी विस्पोट के पीछे ग़द्दाफ़ी का हाथ
ग़द्दाफ़ी दुनिया भर में उस समय बहुत बदनाम हो गए जब 21 दिसंबर, 1988 को फ़्रैंकफ़र्ट से डिट्रॉएट जाने वाले पैन -ऐम जहाज़ में स्कॉटलैंड में लॉकरबी के ऊपर हवा में विस्फोट हुआ जिसमें 243 लोग मारे गए.
बाद में जाँच में पाया गया कि इसमें कथित रूप से लीबिया का हाथ था. अमरीकी राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन ग़द्दाफ़ी से इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने उन्हें 'पागल कुत्ता' तक कह डाला.
विरोधियों को सरेआम फाँसी
बाहर ही नहीं अपने देश में भी ग़द्दाफ़ी की ज़्यादतियों की ख़बरें बाहर आने लगीं. सार्वजनिक जगहों पर विरोधियों को फाँसी पर लटकाना आम बात हो गई. उन दिनों त्रिपोली में रहने वाले बाशेश शेख़ावी ने बीबीसी से बात करते हुए कहा था, 'एक दिन जब हम विश्वविद्यालय पहुंचे तो उसके मुख्य द्वार पर चार लोग फांसी के फंदे पर लटके हुए थे.
मैं वो दृश्य आज तक नहीं भूल पाया हूँ. हुआ ये था कि गेट पर ग़द्दाफ़ी का एक बहुत बड़ा पोस्टर लगा हुआ था रात को कुछ छात्रों ने आ कर उस पोस्टर पर कालिख पोत दी थी. ग़द्दाफ़ी के प्रशासन ने तय किया कि इन लड़कों को सबक़ सिखाया जाए. उस सब को विश्वविद्यालय के गेट पर फांसी पर चढ़ा दिया गया.'
1996 में ग़द्दाफ़ी के सैनिकों ने त्रिपोली की अबू सलीम जेल में कैदियों को एक अहाते में जमा कर उन पर गोली चलवा दी. 'ह्यूमन राइट्स वॉच' के अनुसार इस नरसंहार मे 1270 कैदी मारे गए. उनके रिश्तेदारों को कभी नहीं बताया गया कि उनके लोग इस दुनिया में नहीं हैं.
लिंडसी हिल्सम ने अपनी किताब में लिखा, 'फ़ुआद असद बेन ओमरान ने मुझे बताया कि वो हर दो महीने बाद अपने साले के दो बच्चों के साथ त्रिपोली जाया करते थे, ताकि वो अबू सलीम जेल में उनसे मिल सकें. वो अपने साथ उनके लिए कपड़े और रोज़-मर्रा की चीज़ें अपने साथ ले कर जाते थे, जिन्हें सुरक्षाकर्मी अपने पास रख लेते थे. उन्हें अपने साले से कभी मिलने नहीं दिया गया. उन्होंने मुझे बताया कि वो 14 सालों तक लगातार वहाँ जाते रहे, लेकिन उन्हें कभी नहीं बताया गया कि वो अब इस दुनिया में नहीं हैं.
एक नरसंहार की विभीषिका को तो समझा जा सकता है. लेकिन 14 सालों की झूठी उम्मीद, जब परिवार ये आस लगाए बैठे हों कि उनके लोग एक दिन घर वापस आएंगे, जब कि वास्तव में उनका निर्जीव शरीर पास के एक गड्ढ़े में पड़ा हो, शायद इससे बड़ी क्रूरता की मिसाल कहीं नहीं मिल सकती. '
यासर अराफ़ात से थी ख़ास दुश्मनी ग़द्दाफ़ी की
वैसे तो ग़द्दाफ़ी मिस्र के राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर को अपना हीरो मानते थे, लेकिन उनके बाद मिस्र के राष्ट्पति बने अनवर सादात और फ़लस्तीनी नेता यासर अराफ़ात से उन्हें ख़ास चिढ़ थी.
विद्रोह के सात दिन बाद बताया अपना नाम
सत्ता पर काबिज़ होने के एक हफ़्ते बाद लोगों को पता चला कि ग़द्दाफ़ी इस सैनिक विद्रोह के नेता हैं. राष्ट्र के नाम अपने पहले भाषण में उन्होंने कहा, 'मैंने सत्ता बदल कर बदलाव और शुद्धिकरण की आपकी माँग का जवाब दिया है. बादशाह ने देश के बाहर रहने की बात मान ली है. बहुत से लोगों ने रुकी हुई और सामंती राजनीतिक व्यवस्था के बाद बहने वाली ताज़ी हवा का ज़ोरसोर से स्वागत किया है.'

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