हाल ही में हिमालय की मानसरोवर झील की तीर्थ यात्रा से लौटे शिव भक्त राहुल गांधी को लेकर काफ़ी कुछ कहासुना जा चुका है.
ये साल 1989 की बात है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक शाखा भाजपा ने पालमपुर में बाबरी मस्जिद वाली जगह पर विशाल राम मंदिर के निर्माण का प्रस्ताव अपने मुख्य एजेंडे के तौर पर पारित किया था.
साल 1989 से 1992 के दरमियाँ जब ये मस्जिद ढहा दी गई तो पार्टी ने अपने इसी मुख्य एजेंडे के साथ अभियान चलाने का फ़ैसला किया था.
लेकिन उस वक़्त भी भले ही भाजपा को इसका चुनावी फ़ायदा मिला था लेकिन पार्टी उत्तर प्रदेश में बहुमत हासिल करने से चूक गई.
हालांकि भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी और उसने कांग्रेस को चुनौती दी. साल 1996 के चुनाव में वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
भारत में रामायण शायद सबसे ज़्यादा पसंद किया जाने वाला महाकाव्य है. भारत में 'रामलीला' हर साल एक बड़े पर्व के तौर पर आयोजित की जाती है.
हज़ारों की भीड़ इसे देखने के लिए मैदानों में इक्ट्ठा होती है. रामलीला भारत के लोक थियेटर और रंगमंच का भी हिस्सा है.
इसलिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को कोई ये बताये कि उनके संस्थान की स्थापना 1925 में हुई थी, लेकिन भारतीय लोग सदियों से रामलीला आयोजित करते रहे हैं.
दरअसल, आरएसएस और भाजपा उत्तर भारतीयों के सबसे प्रिय देवता राम से राजनीतिक मुनाफ़ा अर्जित करना चाहती है. यही उसका मक़सद है.
आरएसएस ख़ुद को राम का सबसे बड़ा भक्त संगठन बताता है और अपने स्वयंसेवकों को सच्चा देशभक्त, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने देश की आज़ादी के आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था.
लेकिन धार्मिक भावनाओं का फ़ायदा उठाने वाले राजनीतिक दल आसानी से 'राम' को एक मुद्दा बना सकते हैं.
मोहन भागवत के बयान के तुरंत बाद सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने फ़ुर्ती दिखाई और अपने बयान जारी किये.
भाजपा सांसद साक्षी महाजन ने कहा कि राम मंदिर का निर्माण कार्य निश्चित रूप से साल 2019 के आम चुनाव से पहले ही शुरू होगा.
और जब देश में चुनाव है तो नेताओं को मुद्दे तैयार करने में देरी करनी भी क्यों चाहिए.
तबाही के मंज़र को संधिनी भुला नहीं पाती हैं.
वह कहती हैं, ''जब मैं घर वापस आ रही थी तो ठहरे हुए पानी में अगर कुछ तैर रहा था तो वो थे पशुओं के शव.''
''ये देखते हुए मेरे दिमाग़ में बस एक ही सवाल आ रहा था कि ये सब कैसे साफ़ होगा? आख़िर इसकी सफ़ाई में कितने दिन लगने वाले हैं. ''
अगस्त में आई बाढ़ केरल में पिछले 100 साल की सबसे भयानक बाढ़ रही. इसमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई और लाखों लोग बेघर हो गए.
संधिनी की तरह कई लोगों को राहत कैंपों में शरण लेनी पड़ी.
महीने के अंत तक पानी का स्तर घटने लगा और लोगों की जिंदगी फ़िर पटरी पर लौटने लगी.
बाढ़ के बाद पानी तो घट जाता है, लेकिन पीछे रह जाता है मलबा, नदियों की वो मिट्टी जो शहरों में कीचड़ कहलाती है.
बाढ़ के बाद अब केरल में बचे हैं टूटे घर, मलबे से पटी सड़कें और सीवर से बाहर आता गंदा पानी. शहरों के कुछ हिस्से और गांव इतनी बुरी हालत में हैं कि उनमें रहा नहीं जा सकता.
संधिनी जब परूवर, कोच्चि स्थित अपने घर आई थीं तो घर घुटनों तक कीचड़ से भरा हुआ था. पूरे घर से सीवर की दुर्गंध आ रही थी जिसे बर्दाश्त करना भी मुश्किल था.
वो बताती हैं, ''ये देखकर मेरा दिमाग़ चकरा गया.''
उन्हें घर के दो छोटे कमरे साफ़ करने में पूरे दो दिन का वक़्त लगा. घर के फ़र्नीचर और किचन के सामान ऐसे ख़राब हुए जिन्हें दोबारा ठीक भी नहीं जा सकता था.''
''मैं उन हज़ारों परिवार के बारे में सोचने लगी जो इस तरह की परिस्थिति में फ़ंसे हए थे. मैंने कुटुंबश्री संस्था से बात की और फ़िर हमने सार्वजनिक स्थानों की सफ़ाई का काम शुरू कर दिया.''
कुटुंबश्री केरल सरकार की ओर से शुरू की गई एक पहल है. ये संस्था गरीबों और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम करती है. इसका गठन 1997 में किया गया था. इस संस्था में केवल महिलाएं ही काम करती हैं.
कुटुंब का अर्थ होता है परिवार और श्री का अर्थ होता है महिला. इन दो शब्दों को जोड़कर इस संस्था का नाम रखा गया है.
संधिनी अपनी साथियों के साथ हर दिन घंटों शहरों और बस्तियों की सफ़ाई में लगी रहती हैं ताकि केरल की धरती को दोबारा ख़ूबसूरत बनाया जा सके.
वो कहती हैं, ''ये संभव है कि हमारी 10 लोगों की टीम छोटी हो, लेकिन हमारे हौसले बुलंद हैं. हम अपने काम को लेकर प्रतिबद्ध हैं.''
हाथों में दस्ताने पहने संधिनी स्कूलों की सफ़ाई करती हैं. स्कूल प्रशासन को ये जानकारी देती हैं कि कितने कंप्यूटर, किताबें ख़राब हुए हैं और कितने रिकॉर्ड के कागज़ात प्रभावित हुए हैं.
संधिनी बताती हैं, ''अब जब भी मैं स्कूल की ओर से गुज़रती हूं तो शिक्षक मुझे शुक्रिया कहते हैं.'' मैं पैसों से लोगों की मदद नहीं कर सकती तो मैं श्रमदान करके लोगों की मदद कर रही हूं.''
बाढ़ ने शहरों में सांप-बिच्छू और अन्य प्रकार के हानिकारक कीड़े मकौड़े पीछे छोड़े हैं. ये महिलाएं शलवार-कमीज़ पहनकर उन्हें दूर करने का काम करती हैं.
संधिनी बताती हैं, ''स्वास्थ्य केंद्र को साफ़ करना सबसे मुश्किल था. टूटे हुए सेप्टिक टैंक और शौचालय से बाहर आते पानी ने उस जगह को दुर्गंध से भर दिया था.''
सफ़ाई करते हुए संस्था के कुछ लोग बीमार पड़ने लगे जिससे आतंक फैल गया क्योंकि उन्हें डर था कि उन्हें लेप्टोस्पायरोसिस या रैट फ़ीवर तो नहीं. इस बीमारी से दो दिन में 11 लोगों की मौत हो गई थी. ऐसे में ये डर स्वभाविक था.धिनी कहती हैं, ''मुझे भी कुछ दिनों तक बुख़ार रहा, लेकिन ये थकान के कारण था. मुझे आराम की ज़रूरत थी.''
अपने काम से लोगों को खुशियां देती और ख़ुद खुश होती संधिनी कहती हैं, ''आस-पास के इलाके में अब मुझे लोग जानते हैं.''
ये साल 1989 की बात है जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक शाखा भाजपा ने पालमपुर में बाबरी मस्जिद वाली जगह पर विशाल राम मंदिर के निर्माण का प्रस्ताव अपने मुख्य एजेंडे के तौर पर पारित किया था.
साल 1989 से 1992 के दरमियाँ जब ये मस्जिद ढहा दी गई तो पार्टी ने अपने इसी मुख्य एजेंडे के साथ अभियान चलाने का फ़ैसला किया था.
लेकिन उस वक़्त भी भले ही भाजपा को इसका चुनावी फ़ायदा मिला था लेकिन पार्टी उत्तर प्रदेश में बहुमत हासिल करने से चूक गई.
हालांकि भाजपा मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी और उसने कांग्रेस को चुनौती दी. साल 1996 के चुनाव में वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.
भारत में रामायण शायद सबसे ज़्यादा पसंद किया जाने वाला महाकाव्य है. भारत में 'रामलीला' हर साल एक बड़े पर्व के तौर पर आयोजित की जाती है.
हज़ारों की भीड़ इसे देखने के लिए मैदानों में इक्ट्ठा होती है. रामलीला भारत के लोक थियेटर और रंगमंच का भी हिस्सा है.
इसलिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को कोई ये बताये कि उनके संस्थान की स्थापना 1925 में हुई थी, लेकिन भारतीय लोग सदियों से रामलीला आयोजित करते रहे हैं.
दरअसल, आरएसएस और भाजपा उत्तर भारतीयों के सबसे प्रिय देवता राम से राजनीतिक मुनाफ़ा अर्जित करना चाहती है. यही उसका मक़सद है.
आरएसएस ख़ुद को राम का सबसे बड़ा भक्त संगठन बताता है और अपने स्वयंसेवकों को सच्चा देशभक्त, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने देश की आज़ादी के आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया था.
लेकिन धार्मिक भावनाओं का फ़ायदा उठाने वाले राजनीतिक दल आसानी से 'राम' को एक मुद्दा बना सकते हैं.
मोहन भागवत के बयान के तुरंत बाद सत्ताधारी पार्टी के नेताओं ने फ़ुर्ती दिखाई और अपने बयान जारी किये.
भाजपा सांसद साक्षी महाजन ने कहा कि राम मंदिर का निर्माण कार्य निश्चित रूप से साल 2019 के आम चुनाव से पहले ही शुरू होगा.
और जब देश में चुनाव है तो नेताओं को मुद्दे तैयार करने में देरी करनी भी क्यों चाहिए.
बाढ़ की त्रासदी झेल रहे केरल की मदद
सबसे ज़्यादा स्थानीय लोग ही कर रहे हैं. इस शहर को दोबारा 'गॉड्स ओन
कंट्री' बनाने में जुटी एक महिला से बीबीसी तमिल संवादाता प्रमिला कृष्णन
ने बात की.
23 अगस्त को 34 वर्षीय संधिनी गोपाकुमार पति और दो
बच्चों के साथ अपने कोच्चि स्थित घर में वापस आईं. बाढ़ के हालात ने उन्हें
तीन अलग-अलग शरणार्थी कैंपों में शरण लेने को मजबूर कर दिया था.तबाही के मंज़र को संधिनी भुला नहीं पाती हैं.
वह कहती हैं, ''जब मैं घर वापस आ रही थी तो ठहरे हुए पानी में अगर कुछ तैर रहा था तो वो थे पशुओं के शव.''
''ये देखते हुए मेरे दिमाग़ में बस एक ही सवाल आ रहा था कि ये सब कैसे साफ़ होगा? आख़िर इसकी सफ़ाई में कितने दिन लगने वाले हैं. ''
अगस्त में आई बाढ़ केरल में पिछले 100 साल की सबसे भयानक बाढ़ रही. इसमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई और लाखों लोग बेघर हो गए.
संधिनी की तरह कई लोगों को राहत कैंपों में शरण लेनी पड़ी.
महीने के अंत तक पानी का स्तर घटने लगा और लोगों की जिंदगी फ़िर पटरी पर लौटने लगी.
बाढ़ के बाद पानी तो घट जाता है, लेकिन पीछे रह जाता है मलबा, नदियों की वो मिट्टी जो शहरों में कीचड़ कहलाती है.
बाढ़ के बाद अब केरल में बचे हैं टूटे घर, मलबे से पटी सड़कें और सीवर से बाहर आता गंदा पानी. शहरों के कुछ हिस्से और गांव इतनी बुरी हालत में हैं कि उनमें रहा नहीं जा सकता.
संधिनी जब परूवर, कोच्चि स्थित अपने घर आई थीं तो घर घुटनों तक कीचड़ से भरा हुआ था. पूरे घर से सीवर की दुर्गंध आ रही थी जिसे बर्दाश्त करना भी मुश्किल था.
वो बताती हैं, ''ये देखकर मेरा दिमाग़ चकरा गया.''
उन्हें घर के दो छोटे कमरे साफ़ करने में पूरे दो दिन का वक़्त लगा. घर के फ़र्नीचर और किचन के सामान ऐसे ख़राब हुए जिन्हें दोबारा ठीक भी नहीं जा सकता था.''
''मैं उन हज़ारों परिवार के बारे में सोचने लगी जो इस तरह की परिस्थिति में फ़ंसे हए थे. मैंने कुटुंबश्री संस्था से बात की और फ़िर हमने सार्वजनिक स्थानों की सफ़ाई का काम शुरू कर दिया.''
कुटुंबश्री केरल सरकार की ओर से शुरू की गई एक पहल है. ये संस्था गरीबों और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए काम करती है. इसका गठन 1997 में किया गया था. इस संस्था में केवल महिलाएं ही काम करती हैं.
कुटुंब का अर्थ होता है परिवार और श्री का अर्थ होता है महिला. इन दो शब्दों को जोड़कर इस संस्था का नाम रखा गया है.
संधिनी अपनी साथियों के साथ हर दिन घंटों शहरों और बस्तियों की सफ़ाई में लगी रहती हैं ताकि केरल की धरती को दोबारा ख़ूबसूरत बनाया जा सके.
वो कहती हैं, ''ये संभव है कि हमारी 10 लोगों की टीम छोटी हो, लेकिन हमारे हौसले बुलंद हैं. हम अपने काम को लेकर प्रतिबद्ध हैं.''
हाथों में दस्ताने पहने संधिनी स्कूलों की सफ़ाई करती हैं. स्कूल प्रशासन को ये जानकारी देती हैं कि कितने कंप्यूटर, किताबें ख़राब हुए हैं और कितने रिकॉर्ड के कागज़ात प्रभावित हुए हैं.
संधिनी बताती हैं, ''अब जब भी मैं स्कूल की ओर से गुज़रती हूं तो शिक्षक मुझे शुक्रिया कहते हैं.'' मैं पैसों से लोगों की मदद नहीं कर सकती तो मैं श्रमदान करके लोगों की मदद कर रही हूं.''
बाढ़ ने शहरों में सांप-बिच्छू और अन्य प्रकार के हानिकारक कीड़े मकौड़े पीछे छोड़े हैं. ये महिलाएं शलवार-कमीज़ पहनकर उन्हें दूर करने का काम करती हैं.
संधिनी बताती हैं, ''स्वास्थ्य केंद्र को साफ़ करना सबसे मुश्किल था. टूटे हुए सेप्टिक टैंक और शौचालय से बाहर आते पानी ने उस जगह को दुर्गंध से भर दिया था.''
सफ़ाई करते हुए संस्था के कुछ लोग बीमार पड़ने लगे जिससे आतंक फैल गया क्योंकि उन्हें डर था कि उन्हें लेप्टोस्पायरोसिस या रैट फ़ीवर तो नहीं. इस बीमारी से दो दिन में 11 लोगों की मौत हो गई थी. ऐसे में ये डर स्वभाविक था.धिनी कहती हैं, ''मुझे भी कुछ दिनों तक बुख़ार रहा, लेकिन ये थकान के कारण था. मुझे आराम की ज़रूरत थी.''
अपने काम से लोगों को खुशियां देती और ख़ुद खुश होती संधिनी कहती हैं, ''आस-पास के इलाके में अब मुझे लोग जानते हैं.''
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